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बोर्ड परीक्षाओं में क्यों करवायी जाती है नकल



अब दौर चलने वाला है बोर्ड परीक्षाओं मे नकल का
जी हां बोर्ड परीक्षा शुरू होने मे महज एक महीना बाकी है बच्चों मे खौफ का माहौल है कि पास हुआ कैसे जाए, वहीं कुछ बच्चों का भरोसा बन्धता है नकल पर कि इस बार भी नकल से पास हो ही जायेंगे,
अब बात आती है "नकल" की, कि ये नकल होती क्यों है? जब इसके परिणामस्वरूप बच्चों का भविष्य बरबाद होता है तो क्यों सरकारी स्कूलों मे नकल को बढावा दिया जाता है?
जवाब मिलता है कि अधिकांश विद्यालयों मे कुछ ऐसे मास्टर है जो नियमित रूप से पठन-पाठन को नही करवाते जिससे बच्चों का पाठ्यक्रम( स्लेबस) अधूरा रह जाता है, कुछ विषयों का पाठ्यक्रम तो 50% भी छू नही पाता है
         और बच्चों को मार्च आते ही बोर्ड मे बैठने के लिए समय बाध्य हो जाना पडता है, जिसके प्रति शिक्षक व शिक्षा-विभाग अपनी जवाबदेही उचित नही समझता साथ ही वो अभिभावक गण जो राजनीति मै खूब ज्ञान रखते है सुबह होते ही होटलो मे जाकर अखबारों की पढ़-पढ़ कर छल्ला खींच निकालते है उन अभिभावकों को बच्चे के भविष्य की शून्य प्रतिशत चिंता भी नही होती कि आखिर नकल का जहर बच्चों की शिक्षा मे क्यों घोला जा रहा है इसका कारण क्या है कि- स्कूल के मास्टर ही अपनी नौकरी को दाव मे लगाकर नकल क्यों करवाते है?
        विद्यालय प्रबंधन मे अभिभावक संघ का गठन किया जाता है और सभी अभिभावकों मे से ही बहुमत के आधार पर एक सुयोग्य अभिभावक को अध्यक्ष चुना जाता है जो विद्यालय के सहयोग व अभिभावको की समस्या को विद्यालय प्रबन्धन के सम्मुख रखता है जो कि सम्बन्धित गॉव का होता है फिर वो अपनी अभिभावक संघ की मीटिंग मे ये बात क्यों नही उठाता कि विषय के समस्त अध्यापक स्लेबस को पूरा करें या पूरा नही होने पर बीईओ कार्यालय मे ऐसे मास्टरों के खिलाफ सूचना दे जो उनके बच्चों के भविष्य को कालीक पोत रहे है? दरअसल अभिभावकों की दर्यादिली को सैल्यूट जो अपने बच्चों का भविष्य तो बर्बाद कर सकते है पर किसी की शिकायत जैसा पाप नही कर सकते पता है क्यों?? क्योंकि वो खुद अशिक्षित है जो बच्चों के भविष्य को रौंध तो सकते है लेकिन आवाज नही उठा सकते.

तो आज इसपर ही चर्चा की जाए.
मास्टरों द्वारा नकल करवाने का सबसे पहला और बडा कारण है अपनी नौकरी बचाना. अब आप सोचेंगे कि नकल से नौकरी का क्या मतलब तो आप सच मे अज्ञान है. यदि किसी मास्टर द्वारा अपने विषय का स्लेबस पूरा नही करवाया जाता जिसकी उसे तनख्वाह मिलती है तो जाहिर सी बात है कि कक्षा का रिजल्ट खराब होगा और यदि एक ही कक्षा के दस बच्चे भी एक ही विषय मे फेैल हो जाते है तो सम्बन्धित विभाग को मास्टर की जवाबदेही होगी और जब पूरी बात की जॉच होगी तो पता चलेगा कि मास्टर जी ने पूरे साल केवल धूप सेकने की तनख्वाह ली है तो मास्टर जी के विभागीय चरित्र व प्रदर्शन पर प्रश्नचिह्न लगेगा और मास्टर जी निलम्बित होंगे.
बस यही कारण है कि मास्टर जी जीतोड महनत से नकल करवाते है और पूरे साल सांसारिक मोह मे लीन रहते है,
फिर बच्चों को प्रताड़ित किया जाता है कि तुम बहुत निठले कमजोर व बेकार विद्यार्थी हो इस लिए तुम्हारे भविष्य को बचाने के लिए हम मास्टर लोग नकल करवाते है और बेचारे युवावस्था मे प्रवेश करते भविष्य के राष्ट्र निर्माताओं को ये साइक्लोजी समझ नही आती है फिर वो बेचारे मास्टरों की सेवा मे लग जाते है कि मास्टर जी नकल तो करवायेंगे और उन बच्चों के वो अभिभावक जो दिन भर होटलो मे ताश पत्ती खेलकर थके हारे मास्टरों को सेवार्थ होकर बोतली मुर्गी की दावत करवाकर कहते है साब बच्चे पर ध्यान रखना.

शिक्षित बने समझदार बने अपने मौलिक कर्तव्यों को पहचाने व बच्चों के भविष्य को कामयाब बनाये न कि चौकिदार या साधु

 सागर सुनार बूढाकेदारिया

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