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उतराखण्ड में पलायन का एक मुद्दा जातिवाद


जातिवाद दो शब्दों से मिलकर बना है जाति तथा वाद, जाति का अर्थ है वंश,कुल या जन की पहचान करने वाला शब्द तथा वाद का अर्थ है विशेषता,महत्व,उपयोग, अर्थात हिन्दु परम्परा के अनुसार मनुष्य को उसके वंश से पहचानने व उसकी विशेषता बताने वाला शब्द जातिवाद कहलाता है

21वीं सदी में वैसे तो आमतौर पर यह शब्द केवल किताबों व अप्रत्यक्ष रूप में देखने को मिलता है  परन्तु भारत के कुछ पिछडे गॉवों मे जातिवाद का प्रत्यक्ष रूप मे होना आम बात है या यूं कहें कि पिछडापन जातिवाद को या जातिवाद पिछडेपन को दर्शाने वाला कथन है 

उतराखण्ड राज्य भारत के अन्य राज्यों मे से शायद जातिवाद मे अधिक लीन है जो पिछडेपन वाले कथन को स्पष्ट करता है, कहने को तो उतराखण्ड का समाज विकासशील है लेकिन मेरा मानना है कि यहॉ जातिवाद की जड़ें अत्यन्त गहरी है जो शायद ही काटी जा सकती है,

यहॉ गॉव का समाज वैसे तो जातिवाद के नाम पर सफेद कॉलर पहने है परन्तु सफेद कॉलर के नीचे मोटी काली मैल की परत चढाये ये राज्य अप्रत्यक्ष रूप से जातिवाद के नाम पर दलितों को डस रहा है

गॉवों में विभिन्न प्रकार के जातिवाद देखने को मिलते है-

अस्पृश्यता- जिसमें किसी दलित को छूने से छूने वाला अशुद्ध हो जाता है

छुआछूत-यह बतलाता है कि दलित को छून या उसका सामान्य जाति के लोगों को छूना वर्जित है

भेदभाव- अर्थात कि दलित व सामान्य जाति मे भेद को बतलाना

जातिवाद- जातिवाद यह बतलाता है कि कौन अपनी जाती का है और चाहे वह गलत कर रहा है फिर भी उसका सहयोग करना है


हमारे गॉव में सभी मे से जातिवाद वाला जातिवाद अपनी कुंडली जमाये है जो यह कहता है कि योग्य अयोग्य कुछ नही होता बल्कि ऊंची जाति वाला है निर्णय कारक है

जबकि स्कंदपुराण में  षोड्शोपचार पूजन के अन्तर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को बताया गया है कि-
"जन्मना जायते शूद्र: संस्कारात् भक्ति द्विज: 
वेद-पाठात् भक्ति विप्र:ब्रह्म जानातीति ब्राह्मण:"
अर्थात जन्म से प्रत्येक मनुष्य शूद्र,  संस्कार से द्विज, वेद के पठन पाठन से विप्र(विद्वान) और जो ब्रह्म को जानता है वो ब्राह्मण कहलाता है
लेकिन भारत में तो ब्राह्मण वंशानुगत है फिर चाहे वो शराबी मांसाहारी या नीच प्रवृति का ही क्यों न हो

इस कारण जातिवाद भी एक अहम मुद्दा है जो पलायन को बढावा दे रहा है क्योंकि दलित का बेटा चाहे कितना भी बुद्धिमान व गुणी क्यों न हो वो ऊंची जाति के एक ऐसे व्यक्ति के नीचे होती है जो व्यवहार व ज्ञान से नीच हो फिर ऐसे शिक्षित दलित लोग पलायन करते है और आंखों मे पट्टी बांधे सरकार व गॉव के लोग इस मुद्दे पे ध्यान नही देते,

सागर सुनार बूढाकेदारिया

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