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पहाडी क्षेत्रों में जीवन की कोई कीमत नही


कहने को तो शहरों या मुख्य नगरों से सुदूरवर्ती पहाड स्वर्ग के समान होते है जहां जीवन शहरों की अपेक्षा शुद्ध पर्यावरण के अन्दर व्यतीत होता है लेकिन मुख्य नगरों से दूर होने के कारण ग्रामीण व पहाडी जीवन बहुत कष्टकारी भी होता है जहां तीन मुख्य समस्याओं (स्वास्थ्य,शिक्षा और रोजगार) के चलते जीवन अत्यन्त दुखमयी हो जाता है

तीनों समस्या में स्वास्थ्य की सुविधा न होना सबसे कष्टकारी होता है, पहाडी क्षेत्रों व ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के लिए उच्च स्तरीय अस्पतालों का अकाल है जिसके कारण कई जाने दम तोड देती है लेकिन जनप्रतिनिधियों का जमीर नही जागता है कि उन लोगों को जनता ने अपनी समस्याओं के लिए चुना है पर चुने जाने के बात कितनी भी दमदार पार्टी का नेता ही क्यों न हो वो लोगों की दैनिक समस्याओं के बारे में नही सोचता है बल्कि सोचता है तो अपनी सोहरत के बारे में.

पहाडों व ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आपातकालीन स्थिति में एक ब्लॉक में एक या दो स्वास्थ्य केन्द्र व कुछ उपकेन्द्र बने है जिनमे किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नही होती है, केवल मात्र टीकाकरण और थोडी बहुत ओपीडी चलती है जो भी गुणवत्तायुक्त सही तरह से नही की जाती ऊपर से कर्मचारियों का रोब अलग.

कल ही की बात है कि एक और नौजवान किशन कोहली की बाइक दुर्घटना से चोट लग गयी जब उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बेलेश्वर ले जाया गया तो वहां किसी भी प्रकार की सुविधा नही होने से उसे ऋषिकेश रेपर कर दिया जिसने ऋषिकेश पहुचने से पहले ही दम तोड दिया, यदि उसे आपातकालीन सुविधा यहीं मिल जाती तो वो दम नही तोडता लेकिन सरकार और जनप्रतिनिधियों को ग्रामीणों की जिन्दगी की परहाव नही है

कुछ लापरवाही पी.एम.जी.एस.वाई की गलती भी थी जो आम लोगों की सूचना देने के बाद भी बदहाल सडकों की सुध नही लेता जिसके चलते आये दिन किसी न किसी घर का चिराग बुझ जाता है और इन क्षेत्रों के नामी नेता को ये समस्याओं की फिकर नही होती कि लोग कैसी कैसी समस्याओं से गुजरते है

कहीं कहीं पहाडी क्षेत्रों में तो प्रसूतियों को डंडियों में मुख्य अस्पतालों तक ले जाना पडता है जिसमें कुछ महिलायें रास्ते में ही दम तोड देती है उन लोगों के जीवन में झांक कर देखों जहां के लोग रोड़, बिजली, पानी की सुविधाओं से इस 21वीं सदी में भी वंचित है, जबकि इनके गॉवों से भी चुवान के वक्त वोट दिया जाता है तो नेता व सरकार को इनके वोट की भी कीमत नही है जो इनके बारे में नही सोचते

धिक्कार हो ऐसे विधायक, नेता और निक्कमी सरकार को कि जो ऐसे छोटे-छोटे कसबो, गॉवों से चुनने के बाद भी इन क्षेत्रों की सुध नही लेते जबकि चाहे तो एक सुविधाओं से लेस अस्पताल, स्कूल खुलवा सकते है लेकिन भारत और उतराखण्ड में तो सोहरत पाने के चक्कर में अपने मूल कर्तव्यों को भूल जाते है 

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