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उतराखण्ड मे आपदायें व आपदाओं से जूझते लोग

उतराखण्ड हिमालय क्षेत्र का ग्यारहवां राज्य है जो अपनी भौगोलिक विषमताओं के लिए अन्य राज्यों से भिन्न है जहां ऊंचे ऊंचे पर्वत, घहरी घाटियां,सुदूरवर्ती क्षेत्र व इक्कीसवीं सदी में आधुनिकता से दूर जीवन यापन करना बहुत ही कठिन व जोखिम भरा होता है 
कभी अपने हक के लिए लडना, तो कभी अपने अधिकारों के लिए, कभी रोटी तो कभी कपडा व मकान इन सभी के लडते लडते एक ग्रामीण जीवन हताश हो जाता है और इस हताशा में पहाडी लोगों पर कहर बनकर टूट पडती है आपदाओं की मार 

जी हां उतराखण्ड आपदा जोन के लिए बेहद ही संनेदनशील राज्य माना जाता है जो भूकम्प जोन के पांचवें स्थान पर आता है, साथ ही हिमालय की तीन श्रेणियों में मध्य हिमालय पर स्थित होने के कारण राज्य में अधिकांश भू भाग पर पर्वत श्रृंखलाएं देखने को मिलती है, जो कि मानसून के समय आर्द्रता लिए पवनों को तेज ढलानों से ऊपर उठाकर मूसला धार बरसा व गरजन करते है, जिस कारण यहां आकाशीय बिजली व बाढ जैसी विपतियां भी ग्रामीणों के जीवन पर मंडराती रहती है.

इन सभी कठिनाइयों व कडे परिश्रम के बाद जब ग्रामीण जीवन शासन प्रशासन से मदद की गुहार लगाता है तो वह नींबू की तरह निचुड सा जाता है, और हमारे देश में जब तक कोई मर न जाये तब तक उसकी समस्याओं के लिए हमसे सहानुभूति नही निकलती है 

बूढाकेदार टिहरी जनपद का सुदूरवर्ती गॉव है जो कि मेरे साथ साथ बूढे बाबा भोले नाथ का भी निवास स्थान है, कहने को तो पाण्डवों को गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने हेतु सर्वप्रथम शिव शंकर बूढे रूप में यहीं मिले थे और तब से स्थान प्रथम केदार के नाम से जाना जाने लगा, फिर पैदल यात्रा के समय यमनोत्री से गंगोत्री फिर बूढाकेदार होते हुए त्रिजुगीनारायण से केदारनाथ तथा बदरीनाथ  जाया जाता था.

 इतनी बडी महत्व होने के बाद भी ये क्षेत्र विकसित नही हो पाया, जिसका उदाहरण इस बात से जान पडता है कि-
बूढाकेदार दो नदियों के तट पर बसा गॉव है जिन नदियों में प्रत्येक मानसून में भयानक बाढ आती है जिससे कि कई बरसों से नदी तल मे गाद भराव होने के कारण नदी तल तटबन्धों से निरन्तर ऊपर बढता जा रहा है, मेरे द्वारा प्रत्येक साल रीवर बेड से गाद की सफाई के लिए लेख लिखा जाता है लेकिन न तो क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों को समझ आता है ना ही विभागीय लोगों को. 


रीवर बेड में हर साल गाद भरने के कारण नदी तल ग्रामीण बस्ती से ऊंचा उठता जाता है जिससे बाढ का पानी तटबन्ध की सीमा को लांगता हुआ गॉव में प्रवेश करता है जो कि बाढ प्रवाहित क्षेत्रों की समस्या है. इसके लिए बाढ से बचाव के सुझावों में नदी तल से प्रत्येक साल गाद की सफाई भी उपायों में आती है 

गौरतलब हो कि 2013 में आयी भयानक बाढ से बूढाकेदार में भी बहुत तबाही हुयी थी, 5 मकान बहे व 20-25 बीघा सिंचित भूमि फसल सहित कटान मे बही थी फिर भी सरकार द्वारा बिना पुख्ता दीवार सुरक्षा के ही कच्ची सी दीवार खडी की गयी जिसके पत्थर बारिस से ही गिर जाया करते है 

ऊपर से अपने मकानों  के लिए चुंगान हेतु लोग बजरी पत्थर निकाल कर नदी तल की सफाई किया करते थे अब सरकारी विभाग द्वारा भी ग्रामीण लोगों पर पाबंद लगवाया जाता है 

अत: गॉव में नदी किनारे बसी बस्तियां भविष्य में बाढ की चपेट में आ सकती है जिसके लिए सरकार को व सम्बन्धित विभाग को धर्म गंगा नदी के रीवर बेड से गाद की सफाई करवानी चाहिए जिससे कि बाढ का पानी तटबन्ध को पार कर ग्रामीण बस्ती का कटान न कर सके 

सागर सुनार 

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