Ticker

6/recent/ticker-posts

पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी और पहाड़ की कहानी कभी किसी के समझ नही आयी

इक्कीसवीं सदी की आधुनिकता व विकास के लिए जानी जाने वाली वर्तमान सरकार के बावजूद भी भारत के अधिकांश गॉव जिनमें आज भी मूलभूत सुविधाओं का आभाव जीवन को अति कठोर परिश्रम युक्त बनाता है, जहां के ग्रामीण जीवित रहने मात्र को ही विकास समझने लगे है कि- आधुनिक सदी व वर्तमान सरकार के युग में हवा तो मुफ्त मिल रही ये ही शुक्रगुज़ार है 

जी हां हम बात कर रहे है उतराखण्ड राज्य के अधिकांश गॉवों की जहां सड़क,पानी,बिजली,स्कूल, स्वास्थ्य,संचार व रोजगार आज तक अच्छूता है, न जाने ऐसे कितने ही गॉव है जहां लोग संघर्षों व जीवित रहने के लिए निरन्तर कठिन परीक्षाओं से गुजर कर जीवन यापन करते आ रहे है, और अपने बच्चों को इस सदी की विशेषताएं बताकर उनको जीवन की कठिनाइयों से अवगत करवाते है 

गौरतलब हो कि भारत में लगभग 6 लाख 28 हजार 2 सौ 21 गॉव है, और उतराखण्ड में लगभग 16 हजार 9 सौ 19 गॉव है, जिनमे से कुछ ही गॉव विकास की राह पर चल रहे है बाकी के गॉव दिहात, पहाड,बुडेरे, गवाण्या आदि की श्रेणी में दक्के-मुक्के से देश के विकास को प्रगति पे धकेल रहे है 

पहाडों का जीवन इतना भी आसान कहां कि मूलभूत सुविधाओं को अधिकार समझे ये तो परोपकार है हमारे लिए, जिसे दानवीर कर्ण जैसे लोग पैदा होंगे तो तब खैरात में हमें बांटेंगे, जी हां यही कहावत है कि- पहाड का पानी और पहाड की जवानी दोनों पहाड के लिए कभी काम नही आ पाती, लोग रोजगार की खोज में पलायन कर जवानी गवां देते है और पहाड का पानी तो हमेशा से ही ढलानों की ओर बेहकर गंगा मैदानों को लाभान्वित करता आया है, ना ही यहां का पानी यहां रूका और यदि रोका भी तो बिजली बनाकर बाहरी राज्यों को बेचकर पहाड हमेशा से ही स्याणे पन का शिकार होकर अन्धकार में जीते आये है, फिर उसी बिजली को यहां ही बाहरी राज्यों से दुगने रेट में बेचकर पहाडी भोले-भालों को चूना लगाकर अज्ञानता के अन्धकार में, रोजगार के अन्धकार में, अधिकारों से वंचित रखने के अंधकार मे और न जाने किन किन चापलूस व लोमड बुद्धि के रचे जाल के अन्धकार में ढुबो दिया जाता आ रहा है 

बच्चे आज भी सौण-भादो के बसकाली मैने में गाड-गदरों को तर कर स्कूल जाते दिखायी देते है, तो कहीं कंडी में ढो कर अस्पताल ले जाती बीमार व प्रसूती महिलाएं, जी हां यही वो परिश्रम है जो आज भी लोग पहाडो पर केवल जीवित रहने के लिए करते आ रहे है इस विश्वास के साथ कि हमने एक ऐसी सरकार को वोट दिया है जो भविष्य में सत्ता संभालते ही हमारे बच्चों को इस कष्ठदायी जीवन से मुक्ति दिला दे, और अन्तत: ये अन्धविश्वास सय्या पे लेट कर सदियों से बूढी आंखों में दफन होते आ रहा है 

सागर सुनार बूढाकेदारिया 

Post a Comment

0 Comments