समाज की समस्याओं के विरोध मे आवाज उठाना
गॉवों मे अधिकांशता देखा जाता है कि कुछ लोग गॉव मे सत्तात्मक एक तंत्र को कायम रखे होते हैं जो उनके पूर्वजों से चला आ रहा होता है, जिसे हम गॉव के पंच कहते हैं।
ये पंच शब्द सरपंच से बना होता है जिसमे चार लोग गॉव के चार वर्णों से होते हैं और पांचवा व्यक्ति वह होता है जो एक दो गॉवों से सम्पर्क रखता हो या दूसरे गॉव का हो जो सभा की सूचना व कानून दूसरे गॉवों तक पहुंचाए। जिससे कि हर गॉव मे कहीं न कहीं समानता के कानून हों।
लेकिन कुछ गॉवों मे पंचों की ये संख्या केवल एक ही वर्ग के व्यक्तियों तक सीमित हो जाती है। और उनके पूर्वजों ने जो प्रथा चलायी वो आज की इक्कीसवीं सदी मे भी कायम है।
ऐसी व्यवस्था से न्याय निष्पक्ष नही रह जाता क्योंकि इसमे न्याय, वर्ग विशेष के व्यक्तियों व रिस्तेदारों के लिए अलग और आम जनता के लिए अलग हो जाता है। इसी कारण कुछ गॉवों की दशा और दिशा ज्यों कि त्यों बनी है। और हम बार बार जनप्रतिनिधियों को कोशते रहते हैं कि गॉव का विकास नही हो रहा। सही मायने मे इन ही लोगों ने जनप्रतिनिधियों को अपने अधीन किया होता है। जिस कारण जैसा वह कहते हैं जनप्रतिनिधि वैसा ही काम करते है। अर्थात जिस काम मे उन चंद लोगों का भला हो रहा हो या फायदा वो उसी काम के लिए जनप्रतिनिधियों को आदेशित करते हैं। बाकी आम जनता के लिए क्या फायदेमन्द है वह सोच केवल और केवल उन पंचों के न्याय के आधार पर निर्धारित हो जाती है।
इन सब बातों को बहुत कम लोग समझ पाते हैं। और जो समझ जाते हैं वह इस व्यवस्था से दूर हो जाते हैं। और बचे गॉव वासी गॉव की हालत पर कहते है कि फलाणा गॉव तो खोखला कर दिया कुछ लोगों ने।
ये चंद चार लोग अपने वर्ग विशेष के कुछ युवाओं को अपने तंत्र की चेन सौंप देते हैं, और वो अपने वर्ग विशेष को। ये क्रम यूं ही चलता आ रहा है। यदि वह चार लोग गॉव के हितैषी हैं तो गॉव तरक्की करता है। नही तो ये तंत्रात्मक चेन केवल अपना व अपनों के भले को प्राथमिकता देते हुए आम जनता के लिए ना के बराबर हो जाता हैं। बस यही कारण होता है कि कुछ गॉव तो समय के साथ विकसित होते जाते हैं, और कुछ जस के तस रहते हैं।
इस लिय न्याय प्रद विचार को बढावा दें और जागरुक होकर हर गलत का विरोध करें। क्योकि सही मायने मे शिक्षा वही है जो गलत को गलत और सही को सही कहने का दृष्टिकोण विकसित करती है।
सागर सुनार
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