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भडवचन/भडबोल की गाथा (नरबलि)

प्रस्तावना
उतराखण्ड में जीतू बगड्वाल,भीमू भड आदि भडों की गाथाओं में हर ले जाने के किस्से आज भी मशहूर है। जो कि सच्ची घटनाओ पर आधारित हैं। और आज 21वीं सदी में भी कई घटनाएं ऐसी सुनने को मिलती है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नही जाने के कारण यह मात्र एक दुर्घटना बन कर रह जाती है। जिसे मेरे द्वारा प्रकाशित करने का एक प्रयास है। 

उतराखण्ड देवभूमि नाम से प्रसिद्ध पर्वतीय राज्य है। जहां ऊंची-ऊंची चोटियों में देवी-देवता निवास करते हैं। इसी आवरण के बीच बसता है मानव समाज। जो समाज अपनी परम्पराओं व रीति-रिवाज से चलता आ रहा है। गॉव-गॉव, धारू-धारों में देवताओं तथा पित्रों के मन्दिर व चौंरी स्थित है। जिनके प्रति लोगों की सच्ची श्रद्धा, विश्वास व मान्यताएं हैं। ऊंचे डांडों-काण्डों में भ्रांन्तिला डर और दांगुडियों -मांत्रिंयों (परियों) का छल (रथ) कभी तो छायां पुजाता है, तो कभी फडूलू (बकरी) दिलाता है,और कभी भडबोल कर नरबलि। 

उतराखण्ड पौराणिक प्रदेशों में से एक प्रदेश है,जो अपनी मान्यताओं व रीति-रिवाजों के आधार पर देवभूमि कहलाता है। कहा जाता है कि-जहां देवताओं का निवास होता है वहां दानवों का वास भी रहता है, और उनके साथ छोटे-मोटे रथ्थी, बयाल ( छल छिदर) का प्रकोप भी रहता है जो समय-समय पर अपनी पूजा, बलि आदि किसी न किसी रूप से लेते रहते है। 

ऊंचे-ऊंचे डाण्डों कण्डों में अधिकांशत: जो किसी क्षेत्र की सीमा बनाते हों वैसे पर्वतों के गलियारे जहां से लोगों का आवगमन एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में होता है,या मानव बस्ती के चारों ओर की सीमाओं में दानवों का निवास स्थान होता है। पुरानी मान्यताओं के आधार पर दानवों में दैंन्त, इकुठ्या, मुड्यास्या, आदि प्रमुख हैं जो किसी भी रूप में अपनी सीमाओं पर विराजमान रहते हैं। 

गौरतलब हो कि हमारी संस्कृति में बचपन से ही हमने अल्पायु में मृत्यु को सुना व देखा है कि किस प्रकार कोई छांया, रथ्थ, या भडबोल के कारण अल्प आयु में ही शरीर त्याग देता है। जिसमें जीतू बगड्वाल, भीमू भड, व अनेक बाल मृत्यु की स्थानीय गाथाएं सुनी है। 

सामान्यत: दांगुडी-मान्त्रियों के रथ्थ छांया पुजाते है या फडूलू (बकरी) मरवाते है लेकिन हमारे उतराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में नरबलि यानि भड-बोल आज भी सुनने व देखने को मिलता है, कि किस प्रकार दैंत व भूत वचनबद्ध कर पूर्वनिर्धारित समय पर इंसानों को अपने साथ ले जाते है। 

भडबोल/ भडवचन
हमारी देवभूमि भडों का गढ रही हैं, जहां आज भी भड (योद्धा) पैदा होते है। यौद्धा से तात्पर्य है कि ताकतवर, डिल-डोल शरीर व हर ले जाने वाली काया जिसे ऊपरी शक्ति जैसे दांगुडी-मान्त्री (परियां) व दानव पसन्द कर अपना वाहन(सवारी), सुरक्षाकर्मी (गार्ड) या अन्य कामों के लिए उन्हें धरती से अपनी दैवीय दुनिया में ले जाते हैं। 
आज के समय में भड समान शरीर के लोगों के साथ जब यह घटना होती है, अधिकांशत: ये लोग निडरधैड-फैड स्वभाव के होते है। जो बिना डर-भय के कभी भी, कहीं भी आते जाते है ऐसे समय में जब दानव से मुलाकात होती है तो किसी के साथ बल प्रदर्शन के लिए गुथम-गुथ्था होती है या किसी के साथ सलह मशवरा। 

तब दानव उस पर अपना प्रकोप करते हुए अपने साथ ले जाने के लिए प्रयास करता है। भड प्रवृति के लोग अपने कामों को निपटाने या अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन करने के बाद आने का वचन करता है। जिस वचन को ही गढवाल में भडबोल/भडवचन कहा जाता है। किसी भड ने दानव से वचन किया है कि- जब तेरा मुझ पर प्रकोप हो ही गया है और मैं तेरी कैद में हूं तो, मुझे समय दे अपने परिवार से मिलने का, अपनी कुछ जिम्मेदारी निभाने का, या कुछ काम पूरा करने का उसके बाद मैं स्वयं उस समय में अपने शरीर को त्याग कर तेरे पास आ जाऊंगा। 

"इंसानो के द्वारा एक अदृश्य ताकत को निडर होकर मृत्यु का वचन देना ही भडबोल या भडवचन कहलाता है"

मृत्यु का निर्धारित समय
उस अदृश्य ताकत को दिए बोल के अनुसार जब वह समय निकट आता है तो वचनबद्ध व्यक्ति संसारिक मोह को त्याग कर उस दानव के पास जाने को व्याकुल रहता है। क्योंकि वह उस शक्ति के प्रकोप से कैद हुआ होता है, जो कि अपने वचनो पर अडिग रहते हुए समय का इंतजार करता है। 

निर्धारित समय के एक-दो दिन पहले से  व्यक्ति अपने दिमाग के काबू से बाहर हो जाता है, और ऐसा व्यवहार करने लगता है, कि मानो उस व्यक्ति को वह शक्ति सामने दिखायी दे रही हो, और वह उनसे बातें करने लगता है। 
परिवार वालों से जाने की अनुमति लेते हुए सभी को स्नेह प्रेम व अाग्रह करता है कि- मुझे क्षमा करना अब मुझे जाना होगा अपना ख्याल रखना, मैं अपनी पूरी जिम्मेदारी वहन नही कर पाया जिसके लिए मैं परिवार का दोषी हूं। 
यह कहते हुए उस व्यक्ति की आंखे बहुत कुछ बयां करती है , नम आंखें, जुबां में दर्द और दिमाग में केवल जाने की चिंता सताती है। 

और फिर काल का समय आते ही कुछ बहाना लेकर वह व्यक्ति जीवित ही उस शक्ति के आघोष में लीन हो जाता है जिस शक्ति ने उसे कुछ सालों, महीनों पहले अपनी कैद मे रख कर वचनबद्ध (भडबोल) कर साथ चलने का वादा किया था। 

और अन्तत: ऊपरी शक्ति के रथ्थ में पडकर एक इंसान की बलि दानवो द्वारा ले ली जाती है। जिसका प्रमाण हमें हंत्या (पित्र) नृत्या मे लगने वाली छाडी(घटना को बोल कर बताने) से चलता है...

आज के दौर में यह सब कल्पना मानी जाती है, लेकिन यह आज भी पहाडों की एक हकीकत है, जिस ओर किसी का ध्यान नही जाता कि यह समस्या कैसी है, या इस घटना से कैसे किसी को अवगत करवाया जा सकता है। हालांकि आज के वैज्ञानिक समाज में,मैं इसे साबित नही कर सकता। लेकिन अपनी संस्कृति से प्रेरित होकर इस विषय पर लिखने की कोशिश कर रहा हूं 

नोट:- इस विषय पर अगला भाग भी जल्दी प्रकाशित करूंगा। कि भडबोल के बाद कैसे हमें यह घटना का पता चलता है? 

दो शब्द- अपने भाई सन्नी सुनार की स्मृति में

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1 Comments

  1. Bahut khoob leik bhula ,ek sachi ghatna ko sahi Kalam dene ki shandaar kosish ,,,,aane wale virtant ka intjar hai ,,god bless you

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