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सेठ धिरजू सुनार (एक महान व्यक्तित्व)

प्रस्तावना

आमतौर पर देखा जाय तो एक इंसान का जन्म धरती पर विशेष कार्य के लिए होता है, जन्म के बाद व्यक्ति विधि-विधान के अनुरूप कार्य कर अपने जीवन के कार्यों को पूर्ण कर पुन: जीवन चक्र की प्रक्रिया के लिए अग्रसर हो जाता है. कुछ लोग जीवन के इस सत्य की खोज में अपना पूरा जीवन गुजार लेते है, और कुछ जल्द ही यह सत्य जानकर अपने आगे का जीवन व्यतीत कर महान व्यक्तियों की श्रेणी मे आकर अपने व्यक्तित्व को सदा के लिए अमर कर देतें हैं.

धिरजू सुनार

पट्टी थाती कठूड के थाती गॉव (बूढाकेदार) में लगभग एक सदी पहले (लगभग 1880-1910) जन्में धिरजू सुनार अपने पिता भट्टू सुनार की पांचवीं सन्तान थे, चार बहनों के बाद जन्मे धिरजू सुनार अपने पिता के इकलौते पुत्र थे,जिनके पिता रमोली (मोल गॉव) के मूल निवासी थे जो थाती कठुड में व्यवसाय हेतु आये थे, धिरजू सुनार के पिता आर्थिक रूप से सम्पन व्यक्ति थे जिस कारण उनका लालन-पालन उस समय अच्छे से हुआ, पिता के इकलौते पुत्र होने के कारण धिरजू सुनार सबके दुलारे व प्रिय थे, 

विवाह

श्री धिरजू सुनार के छोटी ही उम्र मे दो विवाह हो गए थे, पहला घुत्तू भिलंग से तथा दूसरा नेल्ड कठुड से हुआ था, घुत्तू भिलंग वाली पत्नी से इनकी 6 सन्ताने हुयी जिसमें 4 पुत्र व पुत्री 2 थी, नेल्ड कठुड वाली पत्नी से इनकी 5 सन्ताने थी, जिनके 2 पुत्र व 3 पुत्री हुए, इस प्रकार इनकी कुल सन्ताने 11 हुयी,
सभी भाई बहनों में सबसे बडे पुत्र श्री भरोषा सुनार थे और उनके बाद क्रमश: भरोषी देवी, बचना देवी, गेणी देवी, रिग्ठू सुनार, रिग्ठी देवी, राम जी, बर्फू सुनार, तारा देवी, दर्शन सुनार, व सबसे छोटे पुत्र श्री पूरण सुनार थे, सभी भाई बहिन का आपस मे अधिक तालमेल था 

निवास

धिरजू सुनार व उनका परिवार मूलत: थाती गॉव के बुढार में रहता था लेकिन थाती गॉव में भी इनका दुमंजिला नौ खम्भ्य मकान था, बताया जाता है कि गॉव का मकान उस समय का आलिसान मकान था जैसा गॉव मे दूसरा किसी का नही था (उस समय अधिकांश लोगों के मकान कच्ची घास की झोपडी हुआ करती थी व कुछ के पटाल वाले मकान थे)

व्यवसाय

पिता की आर्थिक स्थिति सही होने के कारण धिरजू सुनार को व्यवसाय हेतु शुरूआती दौर में किसी भी समस्य का सामना करना नही पडा, और बूढाकेदार में एकल परिवार के रूप में सुनार काम करना शुरू कर दिया (तब नब्बे जूला अर्थात तीन कठुड-थाती कठुड, गाजणा कठुड व नाल्ड कठुड में कोई भी सुनार नही हुआ करते थे), सुनार काम का व्यवसाय अच्छा चलने के कारण बहुत कम समय में धिरजू सुनार नाम तीन पट्टियों में विख्यात हो गया, तीनों पट्टियों में अकेले सुनार काम करने की वजह से व्यवसाय बढता गया, बताया जाता है कि उस समय सोना-चाँदी का कच्चा माल दिल्ली से 19 खच्चरों मे ढोया जाता था, (उस समय गॉव में परिवहन व्यवस्था नही होने के कारण धिरजू सुनार स्वंय ऋषिकेश तक पैदल खच्चरों से माल लाया करते थे)



नोट- गुरू कैलापीर देवता द्वारा स्थापित थाती बूढाकेदार गॉव में सभी जातियॉ अपने कार्य के आधार पर गॉव में व्यवस्थित थी उसी में धिरजू सुनार का परिवार देवता के आभूषण बनाने हुतु गॉव में बस गया जो कि अनुमानित दृष्टिकोण है 

सुनार काम मे किस्मत चलने लगी व धीरे- धीरे बूढाकेदार क्षेत्र के लगभग कई गॉवों में इनकी किराने की दुकाने खुल गयी , जिन्हें उनके बडे पुत्रों द्वारा व गॉव के ही उच्च शिक्षित मुनीमों द्वारा संभाला जाता था.
धिरजू सुनार जी थाती गॉव में अपने घर पर ही सुनार काम किया करते थे, बाकी दुकानों को संभालने के लिए गॉव के ही पढे लिखे व्यक्तियों को मुनीम रखा था जो कि पूरा लेखा-जोखा का हिसाब रखते थे.
पिता की सम्पति अथा होने के कारण अगली सन्ताने गैर जिम्मेदार होती गयी, जो कि जीवन के मूल्यों को समझने में समय खर्च न करते बल्कि अपना अधिक समय ममोरंजनो मे व्यतीत करते थे.
बताया जीता है कि उस समय मुख्य बाजार ऋषिकेश के बाद पुरानी टिहरी हुआ करता था लेकिन धिरजू सुनार जी एकलौते ऐसे व्यवसायी थे जिन्होने गॉव मे रहकर पूरे क्षेत्र मे  दुकाने खोलना सबसे पहले शुरू कर दिया था जिस वजह से स्थानीय लोग उन्हें गढवाली बंणिया कहते थे.

कुछ पुरानी कहावतों के अनुसार- खच्चरों से माल उतारने के लिए खच्चरों को पुंडारा के शेरे में अपनी बारी का इंतजार करना पडता था, और इतना माल उतारा जाता था कि अधिक भार होने की वजह से गॉव के मकान का आंगन एक तरफ झुक गया था ( जिसका प्रमाण आज भी देखने को मिलता है)

धिरजू सुनार का रुतबा

सुनार काम से धिरजू सुनार जी का नाम तीनों कठुड में फैल गया, धन-दौलत इतनी अथा हो गयी कि घर में सोने के लैम्प जला करते थे, दूर-दूर तक धिरजू सुनार नाम का डंका बजने लगा, बडे-बडे हकूकदार लोग सम्मान करने लगे, धनसम्पदा इतनी थी कि जिसका हिसाब खुद उन्हें नही था, किलो के हिसाब से सोना चांदी घर पर कूटा जाता था. अथा धन सम्पति और कोमल व्यवहार होने के कारण लोगों की जुबान में उनका नाम धिरजू शाह से सेठ धिरजू सुनार पूरे तीनो कठूडों में बोला जाने लगा ( जिसका प्रमाण आज परिवार के लोग जब मुल्कों के बुजुर्गों से मिलते है तो परिचय देने पर धिरजू सुनार के वंशज बताने पर लोग कहते है तुम सेठ धिरजू सुनार के नाती-पौते हो ? ) 
धिरजू सुनार का रुतबा ऐसा था कि गॉव के बडे बडे हकूकदार उच्च शिक्षित लोग इनके यहां मुनीम की नौकरी करते थे, सेठ धिरजू सुनार से विख्यात हुए नाम के रुतबे से राजा तक भयभीत हो गया था जिसने उनको गिराने के लिए साजिशें रचनी शुरू कर दी थी, 
परिवार में इतनी धन दौलत थी कि सोने व चाँदी के घर मे प्रयोग होने वाली वस्तुएं थी, रुतबे का खुमार परिवार को ऐसा चढा कि लोग द्वारा बताया जाता है कि- 
पुराने मकान की हाटी( बरामदे) में धिरजू सुनार जी सुनार का काम किया करते थे एक बार 2 तोले की नथ बनाकर वह रात सोने चले गए सुबह जब बडी बहू ने सफाई की तो नथ खो चुकी थी, काफी देर खोज-बीन करने के बाद पूछा कि सफाई किसने की तो, बहू को बुलाया गया बहू को पूछा कि जब तुमने यहां झाडू लगाया तो कचरा कहां फेका, कचरे की जगह जाकर खोजा तो देखा नथ वहां कचरे मे पडी थी, ( तब से स्थानीय लोगों मे यह लोकुकती प्रसुद्ध हो गयी कि ये वह सुनार है जो कूडे कचरे में सोने चाँदी फेंक देते है)

सुनारों की चट्टी (तीनमंजिला धर्मशाला)

बूढाकेदार मन्दिर प्राचीन समय से ही चार धाम तीर्थाटन के मध्य का केन्द्र था, पैदल यात्रा के दौरान यात्री गंगोत्री के बाद बूढाकेदार होते हुए केदारनाथ जाया करते थे, बूढाकेदार मे यात्रियों के रुकने के लिए धिरजू सुनार जी ने तीन मंजिला धर्मशाला मन्दिर के पीछे चट्टी नामक स्थान पर बनवाया था, जहां दूर राज्य-देशादि के यात्री थके हारे निशुल्क विश्राम करते थे,
मन्दिर के लिए धिरजू सुनार जी की यह सेवा उस समय प्रदान की हुयी थी, जब यात्रा धामों में कुछ ही जगह कालीकमली की धर्मशालआएं हुआ करती थी तब धिरजू सुनार जी ने यात्रियों की सेवा के लिए सुनारों की चट्टी (धर्मशाला) खोल रखी थी, जो बहुत प्रसिद्ध चट्टी थी

प्रमुख देवता के कार्य

धिरजू सुनार जी उस समय के ऐसे हस्तशिल्पकार थे जो आज की मशीनों के डिजाइन उस समय सोने व चाँदी में तरासा करते थे, उनके द्वारा प्रमुख देवता के कार्यों में दो मुख्य काम है जो वर्तमान में भी दिखते है-

1- गॉव के आराध्य देव श्री गुरूकैलापीर के आभूषणों में कुछ आभूषण धिरजू सुनार जी द्वारा ही बनाये गए है जिनमें सोने के करेले आदि प्रमुख है

2- विशन गॉव में स्थापित श्री महासरनाग की डोली पर जो वर्तमान में चाँदी का काम हुआ है वह भी धिरजू सुनार जी द्वारा ही किया गया है,
कहा जाता है कि महासरनाग देवता की डोली इन्होने ही बनायी थी, चाँदी मे उभेरे गए नाग देवता,विष्णू देवता, फूल,कमल आदि को ऐसे उभेरा गया है जैसे आज मशीनों द्वारा बनाया जाता है, सुनार काम की ऐसी बारीकी को तरासने की कोशिश की गयी है जिसे देख कलाकारी की वाह-वाही करने को दिल कहता है 

परिवार का पतन

घटना उस समय की है जब धिरजू सुनार जी के बडे पुत्र भरोषा सुनार ने अपने दो भाइयों के साथ बुढार नामक स्थान में एक देवदार का पेड़ बिना जंगलात की इजाजत के काट दिया था, बताया जाता है कि गॉव के कुछ लोगोंं ने राजा से इस बात की शिकायत की और राजा ने वन पंचायत  (जंगलात) से धिरजू सुनार जी के ऊपर वन अपराध के तहत पच्चीस पैसा दण्ड निर्धारित किया था. 
दण्ड की वसूली पे आये वन कर्मचारियों को भरोषा सुनार व  रिग्ठू सुनार ने मार कर अपने गौशाले में कुछ दिन बांध के रखा जिसकी खबर से नरेन्द्रनगर( टिहरी)में राजा गुस्से से बौखला गया और गिरफदारी का फरमान जारी किया, 
सुनी जानकारी के मुताबिक धिरजू सुनार जी की पेशी राजा के दरबार नरेन्द्रनगर (टिहरी) में लगी जहां राजा के साथ हुयी कहा-सुनी से गुस्से में आकर राजा ने पूरे क्षेत्र की राशन-पानी बन्द करने की बात कही जिस पर धिरजू सुनार जी ने राजा से कहा- " राजा तुम मेरे गॉव तक अपने पूरे गणमान्य के साथ आओ तुम्हारे कदम जमीन में नही पडने दूंगा इतने सोने चांदी असरुफिया जमीन में बिछा दूंगा"  यह सुनकर राजा भयबीत हो गया और आगे की रणनीती तैयार करने लगा.

पतन के मुख्य कारण

धिरजू सुनार की अथा सम्पति के कारण उनके पुत्र जिम्मेदारियों में ध्यान न लगाकर मनोरंजनों व नशे आदि मे ज्यादा लीन हुआ करते थे, जहां से व्यवसाय का पतन होना शुरू हो गया था, जिसके मुख्य कारण निम्नवत है-

१-अनुमानित सबसे मुख्य कारण यह हो सकता है कि देवता के अभूषण बनाने के उपरान्त सोने के महीन टुकडों को समेट कर अपने पास रखना धिरजू सुनार जी को भारी पड गया बताया जाता है कि यहां से ही देवते का दोष परिवार मे लग गया, जिस वजह से इनके बडे पुत्र दिमागी हालत से पागल से रहने लगे, नशो के कारण परिवार बरबाद होता गया और लड़को ने सुज संभालने की जगह बरबादी करनी शुरू कर दी

२-गौर जिम्मेदार होने की वजह से दुकान पर न रहकर घूमने-फिरने में व्यस्त रहने के कारण दुकानों के मुनीमों ने लूट मचानी शुरू कर दी ( एक मुनीम ने मरने से पहले कुछ प्रयश्चित करना चाहा तो उसने धिरजू सुनार जी के पोतों से सारी बात बतायी कि किस प्रकार हमने दुकानों व घर में चोरियां करनी शुरू कि व क्या-क्या चुराया है जिसमें से एक सोने का लैम्प चुराने की बात भी कबूल की थी )

३-प्रेम प्रसंगों मे पडने की वजह से उपहारों में काजू-बादाम, नारियलों के बोरे भेंट देना या गुस्से में नदी मे बहाना आदि 

४-नोटों की बोरियों को फूंक कर तिलाखा पहनकर ये साबित करना कि हम इतने अमीर है 

५-नशे के ऐसे आदि होना व अय्याशी में डूबने के कारण घर पर ही बेडों की महिलाओं से परात पर मुजरा करवाना व सोना,चाँदी व नोट लुटाना,

६-जंगलात की घटना से राजा व गॉव वालों की मिली भगत से परिवार को गिराने के लिए साजिशों को रचा गया 

धिरजू सुनार का अन्तिम समय

पुत्रों की गैर जिम्मेदाराना हरकतों, उपद्रवों आदि से तंग आकर धिरजू सुनार जी ने अपनी सम्पति को कुछ गागरों मे भर कर रात के  तीसरे पहर में कहीं छुपा दिया था, सुबह उठकर परिवार को पता चला कि घर के सभी सोने चाँदी के आभूषण, सोने के टुकडे आदि घर मे नही है, जिस वजह से परिवार सम्पति में कमजोर होने लगा

कुछ समय बाद दुकान के सामान के लिए ऋषिकेश से आते वक्त कुछ गॉव वालों की मदद से राजा ने धिरजू सुनार जी का टिहरी-चम्बा के मध्य कतल करवा दिया.

परिवार के पास जब यह खबर पहुंची तब गॉव के लोगों ने परिवार को बहुत डरा-धमका दिया कि सब को मार दिया जायेगा कोई वहां मत जाना, इस डर के उनके लड़के व परिवार वाले घर से बाहर तक नही निकले ना ही पुत्र बधुओं ने उन्हे वहां जाने दिया, 
परिवार पूरा टूट चुका था, रुतबा डर मे तबदील हो गया, धिरजू सुनार जी के पुत्रों की बहुओं ने उन्हें मृत शरीर तक लाने नही दिया कि कहीं इन्हें भी बहला-फुसला कर मार न दें, और एक कुशल व्यवसायी, लक्ष्मी पुत्र सेठ धिरजू सुनार जी का अन्त हो गया, 
धिरजू सुनार जी का दुर्भाग था कि उनका अन्तिम संस्कार तक उनके परिवार के हाथों नही हुआ...

कुछ समय बाद कोर्ट से उनकी निशानी ले जाने के लिए टिहरी से फरमान आये लेकिन परिवार के सदस्यों को डर की वजह से टिहरी नही जाने दिया गया , और ना ही तब तक उनकी परिस्थिती ऐसी रही कि वह वहां जा सके.

देखते-देखते सुनार परिवार बर्बाद होने लगा सभी काम काज ठप पडने लगे, दुकाने बन्द होने लगी, बचा-कुचा माल हडपा जाने लगा, कुछ का मुनीमो द्वारा गबन हुआ और परिवार बुलन्दी के शिखर से जमीन पर गया...

बूढाकेदार क्षेत्र में अनुसूचित जाति के एक व्यवहारिक, कुशल व्यवसायी, अथा धनवान व लक्ष्मी पुत्र सेठ धिरजू सुनार जी को गॉव वालों व टिहरी रियासत की रंजिसों  मे फसाकर पूरे परिवार को ऊंचाइयों से नीचे गिरा दिया, और जातिगत वर्चस्व में अनुसूचित जाति के व्यक्ति को महानता से नीचे उतारने के लिए टिहरी के राजा ने साजिश रच कर एक महान व्यक्तित्व को समाप्त कर दिया...

नोट:- यह लेख लिखने के लिए मुझे हमेशा से ही मेरे परम मित्र श्री अखिलेश कुमार जी ने प्रेरित किया , मैं धन्यवाद अर्पित करता हूं आपको, जो आपने मुझे हमेशा ही सकारात्मक ऊर्जा से प्रोत्साहित किया, और सेठ श्री धिरजू सुनार जी की जीवन गाथा के लिए मुझे सुझाव अर्पित किया 

दो शब्द:- यह मेरा सौभाग्य है कि मैं चौथी पीडी में अपने परदादा श्री धिरजू सुनार जी के जीवन सन्दर्भ में अपने पिता स्व श्री विनोद सुनार जी द्वारा बताये गए अपने परिवार के इतिहास को लिख कर आने वाली सुनारों की पीढी के लिए लिपिबद्ध कर पाया हूं
                                     लेखन- सागर सुनार
                               पर पोत्र सेठ श्री धिरजू सुनार


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3 Comments

  1. बहुत ही सुंदर विर्तांत,, एक सत्या को नये समाज तक पहुं चाने के लिए आपका आभार प्रकट करता हूँ,, ये लेख जो एक सत्य घटना पर आधारित है, हमे सीख देता है की जीवन में,, इंसान को अपना संतुलन नही खोना चाहिए खासकर जब वो बुलंदी पर सवार हो,,, ,, कोटि कोटि नमन पुज्य सुनार जी को

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  2. This comment has been removed by the author.

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