किसी भी देश की ताकत होते है उस देश के बच्चे और वही बच्चे भविष्य के राष्ट्र निर्माता होते है, और ये राष्ट्र निर्माता कक्षाओं में बैठ कर देश के नागरिक बनने का पाठ पढते है, विद्यालय वह नींव है जहॉ बच्चे सामाजिक व नागरिक गुणों को समझते है फिर व्यवहारिक रूप से उसका प्रयोग करके राष्ट्र को मजबूत बनाते है,
लेकिन भारत के कुछ राज्यों में बच्चों के भविष्य को लेकर जरा भी चिंता नही है सरकारी नीतियों में तो बच्चों के बुनियादी विकास के लिए कई नीतियां बनायी जाती है लेकिन वास्तविक रूप से सब धूमिल हो जाती है, उन राज्यों मे प्रथम स्थान उतराखण्ड का है जहां बच्चों के भविष्य की सरकार को जरा भी चिंता नही है
सरकारी विद्यालयों मे निरन्तर गिरते शिक्षा के स्तर से छात्र नामांकन संख्या दिन प्रति दिन घट रही है वहीं कुछ विद्यालय बंद होने की कगार पर है, और जो विद्यालय चल रही है उनकी हालत देख कर कोई भी शिक्षित अभिभावक अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी विद्यालयों मे नही करवाते क्योंकि न तो बच्चों को भौतिक संसाधन की उच्च व्यवस्था है और न ही शिक्षा की गुणवत्ता पर शिक्षा विभाग का ध्यान है तो बस सब कागजी रूप में,
जिस देश व राज्य में विद्यालयों पर ध्यान न देकर राजनीति पर अधिक बल दिया जाता हो वहां का भविष्य खतरे पर ही होगा, वहीं विकसित राष्ट्रों व वर्तमान दिल्ली राज्य भी भविष्य के राष्ट्र निर्माताओं की चिंता मे है जो ये जानते है कि देश तभी प्रगति करेगा जब वहां का बच्चा युवा शिक्षित होगा और पढा लिखा युवा चतुर्थ व पंचम श्रेणी के क्रियाकलापों मे कार्यरत होगा
यूरोपियन देश आज विकास की चरम सीमा पर है क्योंकि वहॉ का युवा उच्च शिक्षा में व्यस्त है लेकिन हमारे देश के युवा चौकिदार बनने मे खुश है, दिल्ली सरकार पढी लिखी सरकार है जिसने सरकारी स्कूलों को विदेशी मॉडलों पर तैयार करके आम जनता के सपनों को साकार किया है
उतराखण्ड के अधिकांश विद्यालयों की हालत दयनीय है जिसकी सुध न तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों को है और न ही सरकार को, अब बच्चों के भविष्य पर मंडराता ये खतरा बेरोजगारी की नींव डालता है, अन्य राज्यों व उच्च शिक्षा नीति के नक्शे कदम पर तो हमारे राज्य ने भी नौकरी के लिए कडे मानक खडे कर दिये है परन्तु बच्चों की बुनियादी शिक्षा व शिक्षा की गुणवत्ता को बढाया नही जा रहा जो भविष्य में देश व राज्य के लिए खतरा है
सागर सुनार बूढाकेदारिया
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