उतराखण्ड राज्य में उत्तराखंड का लोक पर्व फूलदेई एक लोक पर्व है जो हिन्दू कलैण्डर के अनुसार चैत्र माह यानि की हिन्दू नव वर्ष की 1गते से शुरू होता है जो कहीं कहीं 1 महीने तो कहीं 15 दिन तथा टिहरी गढवाल के अधिकांश गॉवों में 9 दिन तक मानाया जाता है,
बच्चों के इस लोक पर्व पर बच्चे सुबह धूप लगने से पहले फ्योंली,क्यालू,बास्या,राई व बुरांश के फूलों को तोड कर ल्युठ्यों, कंडुल्यों में भर कर अपने परिवार व मन्दिर की डेहली पर घर की कुशलता के लोक गीत गा कर फूल डालते है.
नये वर्ष की उमंग व नयी ऋतु (बसन्त ऋतु) के आगमन की शुरूआत बच्चों में खूब देखने को मिलती है, बच्चों के इस उत्साह के साथ सुबह सबसे पहले फूल डालने की बागडोर इस पर्व को और भी दिलचस्प बनाती है,
हिमालय क्षेत्र का यह त्यौहार सुबह की हल्की ठण्डक के साथ शुरू होता है जिसमें बच्चों के झुण्ड सुबह-सुबह उठकर औंस से भरे खेतों में क्यालू व राई के फूलों को तोडते है साथ ही बिट्टों से फ्योंली के पीले-पीले फूलों के साथ बास्या (बासिंगे), आरू,मोल आदि के सभी फूलों को अपनी कण्डुल्यों (रिंगाल से बनी टोकरी), लुठ्यों (लोठा) में भरकर सूरज की पहली किरण आने से पूर्व मन्दिर, घर कुठारों की डेहली(देहलीज) में डालते है.
कुमांउ क्षेत्र में व उससे सटे ग्रामों में बच्चे फूल डालने के साथ-साथ उस घर की खुशहाली के लिए एक लोक गीत भी गाते है-
फूल देई, छम्मा दई,
देणी द्वार, भर भार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार... फूल देई छम्मा देई,
यह पंक्तियां घर की खुशहाली व भण्डार को भरकर रखने के लिए बच्चों द्वारा गायी जाती है.
निर्धारित दिन के बाद अन्तिम दिन सभी बच्चें घर-घर जा कर चन्दा के रूप में चावल,दाल,आलू,प्याज श्रद्धा के अनुसार जो कोई कुछ दे सके उसे लेकर फूलकल्यों (घर से दूर जंगलों गाड गदरों में पिकनिक) मनाने जाते है और घर से दूर पकवान बनाकर घोग्या देवता का आव्हान कर गडाते है फिर घोग्या देवता जिस बालक पर आता है वह एक डुबकी नदी में लगाकर गरम-गरम प्रसाद खाता है फिर वह कल्यों उन्ही घर में देकर यह फूलदेई पर्व को मनाया जाता है.
अपने बेटे को समर्पित मेरी यह कविता-
यह सब देख कर अपने बचपन के दिन याद आ जाते है जब हम भी सुबह-सुबह जल्दी से उठकर दोस्तों के साथ खेतों में फूल तोडने के लिए दौडते थे, जैसे-जैसे बड़े होते गये ये बाल पर्व छूटता गया और फिर फूलदेई को इंटरनेट में ही पढने को मिलता है, आज के आधुनिक समाज से यह पर्व विलुप्त होने की कगार पर है, मॉर्डन समाज के परिवारजन अपने बच्चों के सुबह फूल लेने और इस उमंग भरे त्यौहारों की परमीशन नही देते जिसके चलते यह लोक पर्व अब कम ही जगह में मनाया जा रहा है, जिसके लिए उतराखण्ड सरकार को कोई ठोस कदम उठाना चाहिए...
सागर सुनार
2 Comments
Manmohak festival of uttarakhand, , thanxx for the share it with us
ReplyDeleteधन्यवाद आपका सर
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