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गुरू और शिक्षक में अन्तर

 5 सितम्बर यानी के शिक्षक दिवस, हम इस दिन को शिक्षक के सम्मान लिए समर्पित करते है ऐसा क्यों?
क्योंकि आज ही के दिन डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन जी का जन्म हुआ था और उनके जन्म दिन को शिक्षको के सम्मान लिए समर्पित किया गया है,

शिक्षक और गुरू दो अलग-अलग अर्थ के शब्द होते हैै,लेकिन दोनों को हम एक ही दृष्टिकोण में परिभाषित करते है जो कि उचित नही है

शिक्षक की यदि बात करें तो शिक्षक केवल मात्र किताबों का अनुवादक होता है जो किताबी भाषा को छात्रों तक सरल शब्दों में प्रेषित करता है

लेकिन गुरू ज्ञान का सागर होता है जो समस्त समाज में ज्ञान रूपी उजियारा करता है, न केवल छात्र अपितु समाज के प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान देता है,

शिक्षक आज के दौर में एक पेशा बन चुका है जो केवल आजीविका के लिए चयनित एक विकल्प है (जो कि अनर्थ है), लोग स्नातक पास करने के बाद शिक्षा स्नातक पास कर ही लेते है कि नौकरी मिल ही जायेगी चाहे उनका स्वभाव आदर्श हो या न हो,

और गुरू कोई पेशा नही,गुरू तो एक आदर्श प्रतिमा है जो मेरे अनुसार जन्मजात होती है, हर वो व्यक्ति गुरू है जो अपने समाज, व्यक्ति,मित्रमंडली आदि को हर एक क्षण जहॉ गलत हो रहा है या होने की सम्भावना होती है पर समझाता है,सिखलाता है,बताता है,

आज कल शिक्षक नौकरी पाते ही समाज तो छोडिए पर स्कूल के बच्चों तक को ज्ञान नही देता वहॉ तो केवल आजीविका की होड थी जो नौकरी पाते ही पूरी हो गयी अब तो दारू-मुर्गा और खाली समय में ताश पत्ती बाकी  जीवन समाप्त
शिक्षक व गुरू बनने मे बहुत अन्तर है बस यही संस्कार होना अनिवार्य है और यह संस्कार हमारे माता-पिता व उनसे प्रथम कहे जाने वाले गुरूजनों का कर्तव्य है कि भावी पीढी को यह ज्ञान दें

शिक्षक सभी बन सकते है लेकिन गुरू वही बन सकता है जो आदर्श व्यक्तित्व रखता हो

युवा पीढी के लिए सन्देश केवल शिक्षक नही बल्कि आदर्श शिक्षक बनें

                                     विचारक:- सागर सुनार

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